50 साल बाद भी आपात काल की काली यादें जहन में हैं लोगों के
Emergency@50
लाहौर से प्रेस लेकर आए गुरनाम सिंह खुशदिल की आवाज दबाई थी सरकार ने
प्रदेश में आपातकाल के दौरान मुख्यमंत्री थे बंसी लाल, डी.सी थे सुखदेव सिंह प्रसाद
करनाल, 24 जून (शैलेन्द्र जैन): Emergency@50: देश में लोकतंत्र के दमन के बारे में यदि बात की जाएं तो आपातकाल सबसे ज्यादा काला अध्याय इस देश के लिए रहा। जहां पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गांधी तथा उनके पुत्र संजय गांधी ने जिस तरह से आवाम पर डंडा चलाया, उसकी काली यादें आज भी लोगों के जहन में है। किसी की जमीन पर कब्जा कर लिया गया तो किसी की प्रेस तोड़ डाली, वहीं किसी की वर्कशॉप को तोडक़र उस पर कब्जा कर लिया। इस दौरान पत्रकारों पर भी दमन हुआ। जिन पत्रकारों ने दमन सहा, उनमें राम प्यारा और गुरनाम सिंह खुशदिल भी थे। गुरनाम सिंह खुशदिल के बारे में कहा जाता है कि उनकी लाहौर में भी प्रेस थे और वह लाहौर में पत्रकारिता करते थे। सबसे पहले वह तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसी लाल के बारे में लिखा करता थे। बंसी लाल ने आपातकाल के दौरान उनको सबक सिखाने के लिए उनकी प्रेस तोड दी और उनको अंदर कर दिया। इस तरह राम प्यारा ने भी सरकार के खिलाफ लिखा और उनकी भी प्रेस तोड़ दी। उनकी जगह पर नेहरू पेलेस बना दिया। बताया जाता है कि राम प्यारा बाद में निर्दलीय विधायक बने, आपातकाल खत्म होने के बाद उन्हें सम्मानित करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई करनाल आएं। इसी तरह समाजसेवी गुरपाल सिंह डोनी के नाना गुरनाम सिंह खुशदिल का भी पत्रकारिता में एक नाम था। सरकार भी उनके मारे कांपती थी। इसका खामियाजा उन्हें आपात काल के दौरान भुगतना पड़ा। समाजसेवी गुरपाल सिंह डोनी बताते है कि जेल में उनके नाना को यातनाएं भी झेलनी पड़ी। आपातकाल के दौरान सबसे पहली गिरफ्तारी रघुजीत सिंह विर्क के पिता रघुवीर सिंह विर्क की हुई थी। जो बाद में जनता पार्टी की टिकट पर 1977 में कुरुक्षेत्र से लोकसभा का चुनाव जीते। यदि बात की जाएं तो राम लाल वधवा ने भी गिरफ्तारी दी, उस समय कई नेता ऐसे थे जो पुलिस के साथ सेटिंग कर गए और गिरफ्तारी से बचे रहे। वहीं पर चेतन दास भंडारी, ओम प्रकाश अत्रेजा सहित कई लोगों ने भी गिरफ्तारियां दी। कई लोग तो ऐसे थे जिनका परिवार आपात काल के दौरान उजड़ गया। वहीं पर समाजसेवी इंद्रपाल सिंह बताते है कि उनका भी वर्कशॉप था, जिसे आपात कालीन के दौरान तत्कालीन डी.सी सुखदेव सिंह प्रसाद ने तुड़वा दिया था। उनका दोष इतना था कि वह उस समय की सरकार के खिलाफ थे। वह बताते है कि उस समय बिजली बोर्ड में जो आर.एस.एस विचारधारा के कर्मचारी लगे हुए थे, उन पर सबसे ज्यादा जुल्म ढहाए गए। उनके परिजनों की बात की जाएं तो उनके जहन में आज भी आपातकाल की काली यादें है। 50 साल बाद भी देश की जनता ने आपातकाल लगाने वालों को माफ नहीं किया है। जिन लोगों ने आपातकाल के दौरान निर्दोष लोगों पर जुल्म किए उनके परिवार आज उनके कर्मो की सजा भुगत रहे है। वहीं पर आपातकाल के दौरान जुल्म आर.एस.एस के स्वयं सेवकों पर सबसे ज्यादा हुए।